
राष्ट्रीय सनातन पार्टी : भारत के पुनर्निर्माण की क्रांति!
संविधान में बौद्ध, ईसाईं व मुसलमानों के मत/मजहब के समान सनातन धर्म को संवैधानिक संरक्षण दिलाकर बहुसंख्यक सनातनी हिन्दू समाज के धन, धर्म और जीवन की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत एकमात्र राजनीतिक पार्टी
राष्ट्रीय सनातन पार्टी सनातन मूल्यों की रक्षा करते हुए भारत को संसार का सबसे शक्तिशाली व सम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। श्री विश्वजीत सिंह अनंत जी राष्ट्रीय सनातन पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष हैं।

हम राष्ट्र की उस क्रांति का आह्वान करते हैं जो भारत को एक शक्तिशाली, आत्मनिर्भर, समृद्ध और संस्कारवान राष्ट्र बनाए। हमारा उद्देश्य है—एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना जो हर नागरिक को गरिमा, अवसर और सुरक्षा प्रदान करे।
- आर्थिक सशक्तिकरण:
हम सरल ऋण, संसाधनों की उपलब्धता और प्रशिक्षण के माध्यम से हर नागरिक को व्यापार और रोजगार के लिए सक्षम बनाएंगे। कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाकर गांवों से पलायन रोकेंगे और किसानों को उनकी लागत का दुगुना मूल्य दिलवाएंगे।
- कृषक सशक्तिकरण:
किसान आयोग का पुनर्गठन कर कृषि के औद्योगीकरण, खाद्य-प्रसंस्करण और मूल्य निर्धारण की नई नीति लाएंगे। किसानों की आत्महत्या रोकी जाएगी और गांवों को समृद्ध बनाया जाएगा।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य सशक्तिकरण:
हर छात्र को अनिवार्य सैन्य शिक्षा मिलेगी। अग्निवीरों को स्थायी नियुक्ति दी जाएगी। सैनिकों और जवानों को अत्याधुनिक हथियार व प्रशिक्षण देकर उन्हें हर संकट से निपटने के लिए तैयार किया जाएगा। सभी सुरक्षा बलों में पुरानी पेंशन योजना लागू की जाएगी।
- जनसेवा और मूलभूत सुविधाएं:
हर नागरिक को भूमि, जल, जंगल पर अधिकार मिलेगा। सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा, आवास, पेंशन, बैंकिंग, बीमा, संचार व परिवहन जैसी सुविधाएं हर व्यक्ति को सुलभ होंगी।
- समन्वित विकास नीति:
कृषि, व्यापार, उद्योग, पर्यावरण और सैन्य क्षेत्र—सभी में समन्वय स्थापित कर समग्र विकास को बढ़ावा देंगे, जिससे कोई क्षेत्र उपेक्षित न रहे।
- राष्ट्र निर्माण में जनभागीदारी:
हर नागरिक को उसके अधिकार और कर्तव्यों की जानकारी होगी, जिससे वह राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सके।
- सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन:
हम भ्रष्ट व्यवस्था का विरोध करते हैं, लेकिन उसमें मौजूद ईमानदार और राष्ट्रभक्त लोगों का सम्मान करते हैं। हम उन्हें आमंत्रित करते हैं कि वे हमारे साथ जुड़ें और एक नई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना में भाग लें।
राष्ट्रीय सनातन पार्टी आपको आमंत्रित करती है-
आइए, एक नवभारत के निर्माण में सहभागी बनें।
सनातन मूल्यों के साथ एक समरस, सुरक्षित और शक्तिशाली भारत की ओर कदम बढ़ाएं।
स्वतंत्र व पारदर्शी राजनीति के लिए राष्ट्रीय सनातन पार्टी के साथ जुड़कर कार्य करें।
"एष: सनातन संस्कृतिस्य संवाहकम्" ये हैं सनातन संस्कृति के संवाहक

स्वामी शिवानन्द सरस्वती जी
राष्ट्रीय मार्गदर्शक

श्री ठाकुर हरीओम सिंह गुरूजी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

श्री किरण सिंह गुरूजी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

श्रीमती माया देवी जी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

श्री उदयवीर सिंह जी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

श्री कृष्ण कुमार सूद जी
सचिव उत्तर प्रदेश

श्री राजेश कुमार गंगवार जी
राष्ट्रीय महासचिव

श्रीमती साधना कुमारी जी
राष्ट्रीय सचिव

श्री अमीर राज पाण्डेय
प्रदेश अध्यक्ष, झारखण्ड

श्रीमती निर्मला देवी जी
राष्ट्रीय सचिव

श्री प्रदीप कुमार मिश्रा जी
राष्ट्रीय संगठन मंत्री

श्री हरीश कुमार शर्मा जी
राष्ट्रीय संगठन मंत्री

श्री मनीष चौहान जी
सचिव उत्तर प्रदेश

श्रीमती सरिता मिश्रा जी
राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री

श्री ब्रजवीर सिंह जी
सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी

श्री अशोक कुमार जी
राष्ट्रीय व्यवस्था मंत्री

श्रीमती तनु शर्मा जी
राष्ट्रीय कार्यालय प्रभारी

श्री विनय प्रताप सिंह जी
अध्यक्ष. बिहार प्रदेश

श्री बाल किशन जी
प्रभारी, मध्यप्रदेश

श्री चन्द्रभान मिन्हास जी
प्रभारी, हिमाचल प्रदेश

श्री नल्ला विनीत रेड्डी जी
प्रभारी, तेलंगाना प्रदेश

श्री नितिन यादव जी
अध्यक्ष मेरठ मंडल

श्री निलरतन कुमार जी
संगठन महामंत्री, बिहार प्रदेश

श्री आचार्य उमेश चन्द्र शर्मा जी
संगठन महामंत्री, उत्तर प्रदेश

श्रीमती कविता शर्मा जी
संगठन महामंत्री, दिल्ली प्रदेश
स्वस्थ, समृद्ध, शक्तिशाली एवं संस्कारवान भारत के लिए राष्ट्रीय सनातन पार्टी से जुड़े।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र से परोक्ष लोकतंत्र की ओर
लोकतंत्र सरकार का वह रूप है जिसमें सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथों में होती है। एक लोकतांत्रिक देश में, प्रत्येक नागरिक के पास एक वोट होता है, जिसे सरकार की नीति के पक्ष में या उसके विपक्ष में वोट दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, लोकतंत्र में, नागरिकों की प्रतिक्रिया सरकार की नींव के रूप में कार्य करती है। यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के रूप में हो सकता है।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy) जिसे शुद्ध लोकतंत्र या सहभागी लोकतंत्र भी कहा जाता है, उस प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार होता है। वहां पर सारे छोटे बड़े निर्णय जैसे कोई बिल पास कराना, बजट पास कराना, संविधान में संशोधन, कोई नया कानून बनाना आदि जनता द्वारा ही लिए जाते हैं। इसके लिए जनमत कराया जाता है जिसे अंग्रेजी में रेफरेंडम के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में प्रत्यक्ष लोकतंत्र स्विट्जरलैंड में देखा जा सकता है। जहां पर जनता मत द्वारा नियम कानून में संशोधन करती है, बजट पास करती है इत्यादि।
इसके विपरीत, परोक्ष लोकतंत्र (Indirect Democracy) में सारे निर्णय जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि करते हैं। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में बार-बार चुनाव रेफरेंडम नहीं कराना पडता बस एक निश्चित अवधि के बाद ही चुनाव होते हैं। इस प्रकार के लोकतंत्र में प्रतिनिधि चुने जाने के बाद जनता के प्रति उनका दायित्व समाप्त हो जाता है। इस प्रकार का लोकतंत्र भारत जैसे देशों में देखा जा सकता है। इस अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का सबसे बडा दोष यही हैं कि एकबार प्रतिनिधि चुन लिए गए राजनेता अपनी स्वेच्छा से कानून बनाकर देश की जनता पर आरोपित कर देते हैं।
सत्ता-हस्तांतरण के पूर्व से ही भारत में लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र चल रहा हैं- पहले गोरे अंग्रेज लूटते थे, अब काले अंग्रेज लूटते हैं। देश के विधान में विदेशी आक्रांताओं व लुटेरों की संस्कृति इस्लाम, ईसाईं इत्यादि मतों मजहबों को विशेष संरक्षण दे दिया गया, जबकि देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से इस विषय में कोई मत कभी नहीं माँगा गया, और न ही बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने उनकों ऐसा करने के लिए कभी कहा था। इसके साथ ही अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में बहुसंख्यक हिन्दू समाज के धार्मिक अधिकारों को सीमित कर दिया गया। समाज को सामान्य, पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व आदिवासी के वर्गों की गहरी खाई खोदकर तथा हजारों जातियों में बांटकर निर्बल कर दिया गया।
गौहत्यारों का वध करके राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करने वाले बहुसंख्यक समाज के वीरों का सार्वजनिक अभिनंदन करने के स्थान पर उन्हें गौरक्षक गुण्डे कहकर अपमानित व दण्डित किया जाता हैं, जबकि गौमाता भारतीय सनातन संस्कृति के प्राण हैं। हिन्दुओं की धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित किया गया हैं। हिन्दुओं की प्राचीन न्याय व्यवस्था को अमान्य कर दिया गया हैं। हिन्दू मंदिरों का धन गरीब हिन्दुओं के उत्थान में न लगाकर, विधर्मियों के हित में लगाया जा रहा हैं। इनके अतिरिक्त भी बहुत कुछ अन्याय देश के बहुसंख्यक समाज के साथ किया जा रहा हैं।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में किसी भी तरह से एकबार चुनाव जीतने के बाद राजनेता स्वयं को भगवान समझने लगते हैं, मन मर्जी के कानून बनाकर देश की जनता पर आरोपित कर देते हैं। जबकि देश की जनता ने ऐसा करने की कोई मांग नहीं की होती। अब नए कृषि कानूनों को ही ले लीजिए, व्यापारिक समूहों के निर्देश पर सरकार ने कानून बना दिये। यदि प्रत्यक्ष लोकतंत्र होता तो किसानों से पूछा जाता कि क्या वे इस तरह के कानून को बनवाना चाहते हैं ? वोटिंग होती। किसान यदि अस्वीकार कर देते, तो यह विषय समाप्त हो जाता और यदि समर्थन में अधिक मत मिलते, तो इस विषय में कोई प्रगति हुई होती। क्योंकि सरकार केवल प्रबन्धन के लिए रखी जाती है। सरकार देश की भाग्य विधाता नहीं होती। लेकिन इस अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में तो पांच वर्ष ये लोग भाग्य विधाता की तरह ही कार्य करते हैं, अब तो समलैंगिक व्यभिचार व अवैध संबंधों को भी वैधानिक किया जा चूका हैं। ऐसे- ऐसे कानून बना दिए गए हैं, जो समाज की मर्यादा के प्रतिकूल हैं। साथ ही देश के साथ गद्दारी करने वाले नेताओं को देश के नायक घोषित करके उनको महिमामंडित किया जा रहा हैं।
यदि परोक्ष लोकतंत्र होता तो ऐसा अन्याय किया जाना कदापि संभव नहीं होता। राष्ट्रीय सनातन पार्टी अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रत्यक्ष लोकतंत्र में बदलने के लिए कृतसंकल्प हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सरकार की नीतियों, कानूनों और अन्य मुद्दों से संबंधित निर्णय जनता द्वारा लिए जाते हैं। जागरूक भारतीय नागरिक आगे आये, राष्ट्रीय सनातन पार्टी से जुड़े, दायित्व लें और तन, मन, धन लगाकर व्यवस्था परिवर्तन के इस आन्दोलन को जन आन्दोलन का रूप दें।